Party will oust these Congress leaders from Rewa! Know what is the reason:रीवा।एक पखवाड़े से अधिक का समय बीत चुका है। देश में भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिल कर सरकार भी बना ली है। बावजूद इसके पूरे देश में अभी भी वोटों का हिसाब- किताब चल रहा है। किस दल को, कहां से, कितना वोट मिला। किसे अधिक मिला, किसे कम मिला। अधिक मिला तो क्यों मिला, कम मिला तो क्यों कम मिला। वोटों के बढ़ने और घटने के पीछे कौन सा फैक्टर काम किया, राजनैतिक दलों के साथ ही समीक्षकों द्वारा विश्लेषण किया जा रहा है। मध्यप्रदेश और रीवा इससे अछूता नहीं है। लोकसभा चुनाव 2024 में प्रदेश की सभी सीटों में भाजपा ने कब्जा कर लिया है।
इस चुनाव में भाजपा ने छिंदवाड़ा सीट भी कांग्रेस से छुड़ा ली है। प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों में जीत से भाजपा उत्साहित है तो कांग्रेस हतोत्साहित है। वैसे तो दोनों दलों में हार-जीत को लेकर मंथन चल रहा है लेकिन कांग्रेस द्वारा हार का विश्लेषण विशेष रूप से किया जा रहा है। चुनाव दौरान भाजपा और कांग्रेस दोनों में भितरघात के आरोप भी सामने आए थे। परिणाम के बाद ऐसे लोगों को चिन्हित कर पार्टियांआगे की तैयारी करती हैं। सभी सीटों में जीत मिलने के बाद प्रदेश भाजपा ने ऐसे लोगों को जिन पर पार्टी विरोधी गतिविधि में संलिप्तता के आरोप थे, उन्हें माफ करने का ऐलान किया है लेकिन कांग्रेस में ऐसा नहीं है।
कांग्रेस पार्टी विरोधी गतिविधि में शामिल नेताओं को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई की तैयारी में है। अभी पार्टी हाई लेवल में मंथन चल रहा है। पार्टी सूत्रों की मानें तो कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के साथ इस विषय में मंथन कर रहे हैं। हम रीवा के संदर्भ में बात करें तो यहां भी कांग्रेस, पार्टी विरोधी गतिविधियों से अछूती नहीं रही। टिकट की घोषणा के साथ ही अंसुष्ट नेताओं में बगावत सुर तेज हो गए थे। कुछ नेताओं ने पार्टी छोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया तो कुछ ने अंदर ही अंदर गेम करने की कोशिश की। जो पार्टी छोड़कर गए, उनकी तस्वीर तो साफ हो गई लेकिन जो पार्टी में रहकर पार्टी के नहीं रहे, वे ज्यादा नुकसान पहुंचाये। रीवा संसदीय क्षेत्र में ऐसे नेताओं की संख्या भी कम नहीं रही। पार्टी प्रत्याशी को लेकर अधिकांश कांग्रेस नेता खफा थे।
नाराजगी का कारण यह नहीं था कि पार्टी ने किसी कमजोर प्रत्याशी को टिकट दे दिया, अपितु यह डर था कि यदि कांग्रेस प्रत्याशी को जीत मिलती है तो पार्टी मेंउसका वर्चस्व हो जायेगा। यही कारणथा कि कांग्रेस के अधिकतर झंडाबरदार नेता नहीं चाहते थे कि रीवा संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी को जीत मिले। ऐसा किसी एक विधानसभा क्षेत्र में नहीं अपितु संसदीय क्षेत्र के सभी 8 विधानसभा क्षेत्रों में यही हाल था। हालांकि कुछ विधानसभा क्षेत्रों में फ्रंट लाइन के नेताओं ने मेहनत खूब की है और विधानसभा चुनाव की अपेक्षा कांग्रेस का वोट प्रतिशत भी बढ़ा है। यहां दूसरी लाइन के नेताओं ने कमजोरी की। लेकिन कुछ विधानसभा क्षेत्रों में फ्रंट लाइन के नेताओं ने ही कांग्रेस को जिताने के लिए काम नहीं किया। ऐसा हम नहीं, कांग्रेस पार्टी के नेता और उनके समीक्षक कहते हैं।
कुछ कांग्रेस नेताओं के कद पर आ सकती है आंच
भले ही भाजपा ने अपने लापरवाह नेताओं को माफ कर दिया हो लेकिन कांग्रेस ऐसा नहीं करेगी। कांग्रेस कार्रवाई की रणनीति भी बना रही है, जिसमें कुछ नेताओं के कद में आंच आ सकती है। चुनाव परिणामों के मंथन के बाद कांग्रेस संगठनात्मक सर्जरी भी कर सकती है। पीसीसी अध्यक्ष पटवारी इसके संकेत भी दे चुके हैं। यह बदलाव ब्लाक स्तर से हो सकता है। देखना यह है कि कांग्रेस पुर्नवापसी के लिए क्या कदम उठाती है।
गुढ़-देवतालाब को लेकर पार्टी चिंतित चुनाव परिणाम पर गौर करें तो रीवा संसदीय क्षेत्र के तीनविधानसभा क्षेत्रों सेमरिया, सिरमौर और त्योंथर में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा। इसकी वजह यह मानी जा रही है कि असंतुष्ट तबका पाटी छोड़ चुका था। रीवा विधानसभा क्षेत्र में भी यदि पार्टी का प्रदर्शन बेहतर न कहें तो विधानसभा चुनाव परिणाम से खराब भी नहीं था, लेकिन अन्य विधानसभा क्षेत्रों में ऐसी स्थिति नहीं थी। विधानसभा चुनाव की अपेक्षा कांग्रेस को मऊगंज, मनगवां, देवतालाब व गुढ़ में नुकसान उठाना पड़ा है। देवतालाब में सर्वाधिक 35 हजार से अधिक वोटों से कांग्रेस पीछे रही। सर्वाधिक नुकसान गुढ़ में दिखा। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 500 से कम वोटों से चुनाव हारी थी लेकिन लोकसभा चुनाव में हार का अंतर कई गुना बढ़ गया। यहां कांग्रेस का वोट प्रतिशत काफी गिरा। गुढ़ विधानसभा में पिछले पांच महीने में ऐसा क्या यटित हुआ कि कांग्रेस इतना पिछड़ गई, इस पर मंथन जारी है। जिला कांग्रेस कमेटी तो इस पर मंथन कर ही रही है, भोपाल स्तर पर भी इस पर मंथन चल रहा है