रीवा। अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय ने राज्यपाल के आदेश को ताक पर रख दिया। विश्वविद्यालय के सिस्टम इंचार्ज को मप्र उच्च न्यायालय से अगली सुनवाई तक के लिए राहत मिली है, जिसके चलते अब विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अधिकारी राजभवन के आदेश को भी नहीं देखना चाहते। इस क्रम में सिस्टम इंचार्ज डॉ पीके राय को फिर से पीएचडी कराने हेतु गाइड बना दिया गया। विगत माह तैयार हुई कम्प्यूटर साइंस विषय की सूची में बतौर गाइड और सह प्राध्यापक डॉ राय का नाम उल्लेखित किया गया है, जबकि विश्वविद्यालय के पास डॉ राय के नियमित शिक्षक होने संबंधी कोई आदेश नहीं हैं। पूर्व में एक आरटीआई के जवाब में भी विश्वविद्यालय ने प्रोफेसर के समकक्ष वाला पदोन्नति आदेश आवेदक को थमा दिया था और यही आदेश जिम्मेदार हर जगह दिखाते फिर रहे हैं। गौरतलब है कि 23 मई 2017 को जारी विश्वविद्यालय के आदेश में सिस्टम इंचार्ज पीके राय को (प्रोफेसर पद के समकक्ष) प्रमोशन दिया गया था। इसके पहले विश्वविद्यालय के तारणहारों ने 25 मई 2016 और 7 जनवरी 2017 को कार्यपरिषद से उक्त पदोन्नति देने निर्णय पारित कराया था। राजभवन ने जांच के उपरांत विस्तृत आदेश विगत 1 सितम्बर 2021 को प्रसारित किए थे, जिसमें राज्यपाल/कुलाधिपति ने डॉ राय की पदोन्नति संबंधी कार्यपरिषद के निर्णय को वातिल किया है।
5 अगस्त को होनी है अगली सुनवाई
डॉ राय ने राजभवन के उक्त आदेश के विरुद्ध मप्र उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की। हाईकोर्ट ने स्टे देते हुए 6 दिसम्बर 2021 को अगली सुनवाई तक डॉ राय पर कोई कार्यवाही न करने के आदेश दिए। इसके बाद से हाईकोर्ट की सुनवाई टलती आ रही है। अब आगामी 5 अगस्त को मामले की सुनवाई होनी है। हाईकोर्ट के ऐसे ही एक अन्य आदेश का हवाला देकर विश्वविद्यालय एक प्रोफेसर को संकायाध्यक्ष का लाभ नहीं दे रहा। दूसरी तरफ सिस्टम इंचार्ज को राजभवन के आदेश के विपरीत जाकर सिस्टम इंचार्ज डॉ राय को शिक्षक की तरह सारे लाभ देने का जतन कर रहा है। वर्ष 2022 की नियमित शिक्षकों की वरिष्ठता सूची में भी डॉ राय का नाम जोड़ा गया है।
कमजोर न पड़ जाये विवि का पक्ष
डॉ राय के संबंध में हुई ढेरों शिकायतों को राजभवन ने संज्ञान में लिया था। इन शिकायतों के आधार पर राजभवन ने विगत 12 अक्टूबर 2018 को शोकॉज नोटिस जारी किया। इस नोटिस के जवाब में डॉ राय के पैरोकार तत्कालीन कुलपतियों ने 5 दफा लिखित जवाब राजभवन को भेजे। इन सभी पत्रों में कुलपति की तरफ से डॉ राय को शिक्षक बताने संबंधी नियमों का वर्णन किया जाता रहा। आशंका है कि कुछ इसी तरह के प्रयास अब विश्वविद्यालय की तरफ से हाईकोर्ट में भी हो सकते हैं। चूंकि राजभवन का पक्ष रखने के लिए विश्वविद्यालय अधिकृत है और विश्वविद्यालय पहले से ही डॉ राय के पाले में खड़ा है, ऐसे में निष्पक्ष जवाब न्यायालय तक पहुंचेगा, इस पर संशय है।
उपकृत करने में नहीं छोड़ी कसर
विश्वविद्यालय मेेंं नियमित शिक्षकों की नियुक्ति विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 की धारा 49 के तहत होती है। जबकि डॉ राय की नियुक्ति अध्यादेश क्रमांक 54 की धारा 5 (ए) के तहत गैर शैक्षणिक पद सिस्टम इंचार्ज में हुई थी। इतना ही नहीं, डॉ राय के सिस्टम इंचार्ज पद पर नियुक्ति को लेकर भी शिकायतें हो चुकी हैं। फिर भी डॉ राय को उपकृत करने में विश्वविद्यालय के विद्वानों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। राजभवन को पूर्व में दिए उत्तर में विश्वविद्यालय ने बताया कि डॉ राय से यूजी, पीजी व शोध कक्षाओं में शिक्षण कराया जा रहा है। साथ ही डॉ राय केंद्रीय अध्ययन मंडल के अध्यक्ष नियुक्त हो चुके हैं। अकादमिक परिषद, बोर्ड ऑफ स्टडीज, परीक्षा समिति, कॉलेज सम्बद्धता निरीक्षण समिति में डॉ राय को बतौर प्रोफेसर ही सदस्य बनाया जाता रहा, जो वर्तमान स्थिति में भी यथावत चल रहा है। अब सबसे बड़ी मुसीबत उन शोधार्थियों को होनी है, जिनके ऊपर डॉ राय को गाइड के तौर पर थोपा गया है।
ऐसा रहा राजभवन का आदेश
– सिस्टम इंचार्ज के पद का वेतनमान रीडर पद के वेतनमान के समान होने के कारण मात्र से सिस्टम इंचार्ज के पद को शैक्षणिक पद मान्य नहीं किया जा सकता।
– सिस्टम इंचार्ज पद की शैक्षणिक योग्यता विवि की कार्यपरिषद निर्धारित करती है, जबकि विवि शिक्षक पद के लिए अर्हता का निर्धारण यूजीसी तय करता है।
– अध्यादेश 54 की कंडिका (9) के अनुसार सिस्टम इंचार्ज के पद पर नियुक्त व्यक्ति को शिक्षकीय दायित्व सौंपे जाने मात्र से इस पद को शैक्षणिक मान्य नहीं किया जा सकता।
– मप्र विवि अधिनियम 1973 की धारा 49 के तहत शैक्षणिक पद पर होने वाली नियुक्ति को ही कैरियर एडवांसमेंट स्कीम का लाभ मिलेगा। विवि में कार्यरत् दूसरे अधिकारी को शिक्षक पद पर संविलियन नहीं किया जा सकता और न ही उक्त स्कीम के तहत पदोन्नति दी सकती है।
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