रीवा। सूचना के अधिकार के नियमों का पालन नहीं करने वाले अधिकारियों के खिलाफ समय-समय पर कार्यवाही होती रही रहती है, इसी क्रम में सूचना के अधिकार कानून के उल्लंघन को लेकर एक बार फिर मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह के द्वारा बड़ी कार्यवाही की गई है। आयुक्त के 23 दिसंबर 2021 के एक आदेश में राहुल सिंह ने गंगेव जनपद के लोक सूचना अधिकारी, तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी भारत पटेल एवं डीम्ड लोक सूचना अधिकारी सहायक यंत्री संतोष तिवारी के ऊपर 25 हज़ार रुपये प्रत्येक के हिसाब से कुल 50 हज़ार रुपये के जुर्माने का कारण बताओ नोटिस जारी किया है। मामला आरटीआई एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी के दिनांक 16 जुलाई 2020 को दायर की गई एक आरटीआई से जुड़ा हुआ है जिसमें उनके द्वारा तीन बिंदुओं की जानकारी लोक सूचना अधिकारी जनपद पंचायत गंगेव से मांगी गई थी। द्विवेदी ने तत्कालीन सहायक यंत्री संतोष तिवारी के कार्यकाल में जारी किए गए तकनीकी स्वीकृत, पूर्णता प्रमाण पत्र एवं एक अन्य दस्तावेज की जानकारी चाही थी। लेकिन लोक सूचना अधिकारी के द्वारा आवेदन धारा 6(3) का गलत ढंग से उपयोग करते हुए स्वयं सहायक यंत्री संतोष तिवारी को अंतरित कर दिया गया। इस प्रकार मामले में संतोष तिवारी भी डीम्ड पीआईओ बन गए। लेकिन जब आवेदक को जानकारी नहीं मिली तो उनके द्वारा सीईओ जनपद गंगेव को प्रथम अपील एवं प्रथम अपील पर भी कार्यवाही न होने के बाद द्वितीय अपील सूचना आयोग भोपाल में प्रस्तुत की गई। जिसके विषय में दिनांक 16 दिसंबर 2021 को सुनवाई के दौरान तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी भारत पटेल एवं साथ में डीम्ड पीआईओ सहायक यंत्री संतोष तिवारी को धारा 20 के तहत 25 हजार रुपये प्रत्येक को जुर्माने का कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।
मामले की सुनवाई 19 जनवरी 2022 को नियत की गई है जिसमें आयोग में इनकी पेशी की जानी है साथ में आयोग ने यह भी आदेशित किया है कि उक्त आदेश के 5 दिवस के भीतर आवेदक को वांछित जानकारी बिना किसी शुल्क के उपलब्ध करवा दी जाए और आयोग को पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाए। इस विषय में जब आरटीआई एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी से बात की गई तो उन्होंने बताया रीवा जिले में सूचना आयुक्त के द्वारा निरंतर कार्यवाही किए जाने के बावजूद भी आरटीआई कानून को बड़े हल्के में लिया जा रहा है। लोक सूचना अधिकारी कानून का निरंतर उल्लंघन करते रहते हैं और जुर्माने के बावजूद भी कार्यवाही नहीं कर रहे हैं। जुर्माना लगने के बाद हाई कोर्ट में स्टे के लिए चले जाते हैं जिसमें कोर्ट भी उन्हें तत्काल बिना देखे ही स्टे दे देता है जिससे सूचना के अधिकार कानून और सूचना आयोग के महत्व पर सवाल खड़ा हो रहे हैं। पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए बनाया गया सूचना का अधिकार कानून 2005 आज मजाक बन चुका है। सूचना आयोग को अपनी विशेष शक्तियों का उपयोग करते हुए इन लोक सूचना अधिकारियों से आदेश के 15 दिवस के भीतर जुर्माने की राशि वसूलने के प्रावधान तय करने चाहिए।
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