रीवा। अवधेश प्रताप ङ्क्षसह विश्वविद्यालय से बीएएलएलबी उत्तीर्ण छात्र फिलहाल बतौर अधिवक्ता नामांकन नहीं करा सकेंगे। क्योंकि विश्वविद्यालय शिक्षण विभाग के उक्त पाठ्यक्रम की मान्यता का नवीनीकरण पिछले 14 वर्ष से नहीं हुआ है। मान्यता का नवीनीकरण न कराने पर अब प्रदेश राज्य अधिवक्ता परिषद जबलपुर ने विश्वविद्यालय को नोटिस थमा दिया है। नोटिस में उल्लेखित है कि मान्यता का नवीनीकरण न होने पर उत्तीर्ण छात्रों का अधिवक्ता का रूप में नामांकन किया जाना सम्भव नहीं है। अत: शीघ्र-अतिशीघ्र बार काउसिंल ऑफ इण्डिया (बीसीआई) से मान्यता का नवीनीकरण कराने की हिदायत विश्वविद्यालय को दी गई है। मान्यता नवीनीकरण की सूचना भी राज्य अधिवक्ता परिषद को देने के लिए उक्त नोटिस में कहा गया है, ताकि बीएएलएलबी की डिग्री प्राप्त करने वाले छात्रों को अधिवक्ता के तौर पर नामांकित किया जा सके। अब विश्वविद्यालय में लापरवाही का आलम यह है कि परिषद की नोटिस जारी होने के महीने भर बाद भी अब तक कोई ठोस कार्यवाही जिम्मेदारों द्वारा नहीं की गई है।
160 सीट में दिया जाता है प्रवेश
गौरतलब है कि यूटीडी में बीएएलएलएबी पाठ्यक्रम संचालित है। इस पाठ्यक्रम की 160 सीट में छात्रों को प्रवेश दिया जाता है, जिसके 80-80 के दो बैच निर्धारित किए गए हैं। अधिवक्ता बनने की हसरत लिये लगभग इतने ही छात्र प्रतिवर्ष उत्तीर्ण हो रहे हैं। यूटीडी में संचालित इस पाठ्यक्रम की स्थिति बहुत अच्छी है, जहां पर्याप्त मात्रा में छात्र प्रवेश लेते हैं। अब विश्वविद्यालय के अधिकारियों की लापरवाही से ही पाठ्यक्रम के छात्रों का नुकसान हो सकता है।
परिषद की ढिलाई का उठाया फायदा
राज्य अधिवक्ता परिषद जबलपुर द्वारा जारी पत्र में 2006-07 से विश्वविद्यालय के विधि पाठ्यक्रम की मान्यता न होना दर्शाया गया है। बताते हैं कि राज्य अधिवक्ता परिषद ने अब तक मामले को सामान्य तरीके से लिया था और उत्तीर्ण छात्रों का नामांकन करते रहे, जिसका नाजायज फायदा विश्वविद्यालय ने उठाया और मान्यता नवीनीकरण की कार्यवाही में लापरवाही बरती। जानकारी यह भी है कि मान्यता न होने के कारण रीवा विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण छात्रों को प्रदेश के बाहर अधिवक्ता के रूप में पंजीयन कराने में काफी दिक्कत होती है।
दूरवर्ती व बीपीएड की मान्यता पहले ही गई
उल्लेखनीय है कि पिछले तीन सत्रों में विश्वविद्यालय बीएड, बीपीएड, एमपीएड की मान्यता गवां चुका है, जिसे वापस लाने की कार्यवाही बहुत धीमी गति से चल रही है। ऐसे ही दूरवर्ती शिक्षा केंद्र की मान्यता भी विगत सत्र जा चुकी है। जबकि उक्त पाठ्यक्रमों से विश्वविद्यालय को करीब दस करोड़ की आय होती रही। अब एक और पाठ्यक्रम की मान्यता को लेकर गतिरोध पैदा हो गया है। ऐसी स्थिति में सबसे ज्यादा नुकसान विंध्य क्षेत्र के छात्रों का ही होना है। बाकी अधिकारी-कर्मचारियों का वेतन कहीं जाना नहीं, वह तो मिलना ही है।
वर्जन
मान्यता नवीनीकरण के लिए बीसीआई की टीम निरीक्षण करने आती है। इस बाबत हमने 5-6 वर्ष पहले आवेदन कर दिया था। पैसा भी जमा हो चुका है। जब बीसीआई की टीम निरीक्षण करने आयेगी, तब इस संबंध में अगली कार्यवाही होगी।
डॉ सुरेंद्र प्रताप सिंह परिहार, कुलसचिव
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