रीवा। नगर निगम का चुनाव परिणाम आ गया है, इसमें 11 निर्दलीय पार्षद जीते हैं, इन निर्दलीय पार्षदों में तीन एक भाजपा कार्यकर्ता व दो पदाधिकारियों की पत्नी ने चुनाव जीता है। चूंकि भाजपा के पास 18 व कांग्रेस के पास 16 पार्षद है और परिषद् में बहुमत के लिए 23 पार्षदों की जरूरत एक पार्टी को है, महापौर की कुर्सी तो भाजपा खो चुकी है लेकिन अब अध्यक्ष की कुर्सी पर जरूर कब्जा जमाना चाहती है, जिसको लेकर गुणागणित महापौर चुनाव की हार के बाद से ही शुुरु हो गया है। चर्चा है कि भाजपाईयों को इकठ्ठा कर निर्दलीय को अपनी तरह खींचने की तैयारी में भाजपा जुटी हुई ताकि परिषद् में बहुमत साबित करने की तैयारी में भाजपा है, हालांकि यह भाजपा के लिए इतना आसान नहीं है लेकिन प्रयास बुधवार शाम से ही शुरु हो गए है। चर्चा है कि निर्दलीय प्रत्याशियो के पास फोन पहुंच रहा उसमे कहा जा रहा है भैया मिलना चाहते हैं बुला रहे हैं, हालांकि कुछ ने तो साफ मना भी मिलने से कर दिया है ऐसा कहा जा रहा है।
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पहले भगाया, अब मना रहे
चर्चाओं में कहा जा रहा है कि भाजपा ने पार्षदी चुनाव में जिन दावेदारों को अयोग्य मानकर उनके वार्ड में दूसरों को प्रत्यासी घोषित किया था और जब वह निर्दलीय चुनाव लड़े तो उनको भाजपा ने 6 वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया गया, ताकि भाजपा से जुड़े लोग उन्हें बिल्कुल वोट न करे और वह चुनाव हार जाए लेकिन भाजपा की सभी रणनीतियों को फेल करते हुए वह चुनाव जीत गए और अब जब वह चुनाव जीत गए तो उन्हें ही बाहर का रास्ता दिखाने वाली भाजपा उनको मनाने में जुटी हुई है, उनकी खींचतान शुरु हो गई है। हालांकि चर्चा में कहा जा रहा है कि इतनी बेज्जती के बाद कोई भी वापसी नहीं करेगा क्योंकि यदि वह चुनाव हार जाते तो क्या भाजपा उनकी वापसी कराती और महत्व देती लेकिन वह चुनाव जीत गए हैं तो उनको वापस बुलाया जा रहा है। हालांकि चर्चाओं में कहा जा रहा है कि निर्दलीय साफ तौर पर यही कह रहे हैं कि भाजपा को यदि समर्थन दिया जाता है तो महापौर तो कांग्रेस का है, विरोध तक ही वह सीमित रह जाएंगे लेकिन यदि वह महापौर के पाले में आते है तो वार्ड का विकास भी होगा और सत्तापक्ष के साथ रहेंगे।
इनको दिखाया था बाहर का रास्ता
बता दें कि भाजपा ने नगर निगम चुनाव के पहले 1 से 45 वार्ड में 18 लोगो को बाहर का रास्ता दिखाया था, जिसमें कुछ चुनाव लड़े तो कुछ ने परिजनों को लड़ाया या फिर किसी प्रत्यासी को समर्थन कर रहे थे, अधिकांश तो हार गए लेकिन सूत्रों की माने तो बाहर व 6 वर्ष के लिए निष्कासित किए गए सीएल रावत की पत्नी शिवराज रावत निर्दलीय चुनाव जीत गईं, संजय सिंह संजू खुद चुनाव लड़े और भाजपा प्रत्यासी को ही हराकर जीत गए है। वहीं इसी प्रकार सूत्रों के अनुसार वार्ड क्रमांक 22 से प्रमोद सिंह को बाहर का रास्ता दिखाया गया लेकिन उनकी पत्नी चुनाव जीत गई। अब इन तीनों को मनाने में भाजपा जुटी हुई है, हालांकि चर्चा यही है कि यह अब भाजपा को कभी समर्थन नहीं करेंगे क्योंकि संजय सिंह संजू के घर से उनकी भाभी सुधा सिंह निर्दलीय चुनाव जीती थी और उनको एमआईसी सदस्य भाजपा ने बनाया था लेकिन अंतिम में हालात यह थे कि वह स्तीफा देने को तैयार थी और दे भी दिया था लेकिन मेयर ने मंजूर नहीं किया था विकास कार्य का रोना रोती रहीं, ऐसी स्थिति के बाद भी यदि संजू खुद भाजपा को समर्थन करते हैं व अन्य दो बाहर किए गए प्रत्यासी भाजपा को समर्थन करते हैं तो यह समझ के परे होगा। इसके अलावा भी अन्य निर्दलीय को शामिल करने के लिए जोर लगाया जा रहा है, बता दें कि कहा तो साफ जा रहा है कि भाजपा को समर्थन करने वाले निर्दलीय पहले पूर्व में समर्थन करने वालो का परिणाम का आंकलन जरूर कर ले.
तो क्या इनको भी बुलाया जाएगा वापस?
चर्चा है कि भाजपा जीते हुए प्रत्सासियों को तो वापस बुलाने में जुटी हुई है लेकिन जो अन्य नगर निगम क्षेत्र के 15 कार्यकर्ता व पदाधिकारी बाहर किए गए थे उनको बुलाने को कोई पूछने को तैयार नहीं हैं। चर्चा है कि ऐसे में खुद जिन पदाधिकारियों को बुलाया जा रहा है उनको अंदाजा लगा लेना चाहिए कि आखिर उनकी पूछ किस लिए हो रही है और वह कब तक रहेगी। सवाल यह भी किया जा रहा है कि यदि भाजपा जीते कार्यकर्ताओं को बुला रही है तो क्या हारे हुए व अन्य को भी वापस बुलाएगी और उनको फिर से वहीं सम्मान दिया जाएगा। हालांकि यह खबर पूरी तरह से चर्चाओं पर आधारित है। निदलीय पार्षद किसे समर्थन करेंगे यह उनका खुद का फैसला है और उन्हें इस संबंध में निर्णय लेना है।