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रीवा। दो दशक पहले खून की जरूरत बुजुर्गों व 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को होती थी, लेकिन अब यह आवश्यकता बच्चे एवं युवाओं को भी होने लगी है। इसका बड़ा कारण थैलेसीमिया है। जिम्मेदारों के अनुसार जिले में थैलेसीमिया के 149 मरीज रजिस्टर्ड हैं। इस रोग का प्रकोप इतना है कि मरीजों में सबसे अधिक बी पॉजिटिव ग्रुप की मांग ज्यादा है। इस बीमारी से क्लोज रिलेशन में शादी करने वाले लोग ज्यादा प्रताडि़त मिल रहे हैं। इसके रोकथाम के लिए लोगों को जागरूक तो किया जा रहा है, लेकिन इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा है। इस प्रकार की अनुवांशिक बीमारी का कोई उपचार नहीं होना भी एक बड़ा कारण है। इसके लिए आयरन की गोलियां व रक्त बदलने का ही उपचार किया जा रहा है।
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माता-पिता की वजह से बच्चों को होता है थैलेसीमिया
थैलेसीमिया खून से संबंधित एक रोग है। थैलेसीमिया के अंतर्गत हीमोग्लोबिन बनने की प्रक्रिया बुरी तरह से अव्यवस्थित हो जाती है, जिसकी वजह से रेड ब्लड सेल्स की संख्या कम होने लगती है। चिकित्सकों का कहना है कि यह एक जन्मजात बीमारी होती है जो किसी को उसके माता-पिता से मिलती है। कहने का सीधा मतलब ये है कि थैलेसीमिया एक जेनेटिक बीमारी है। बताया कि जब माता-पिता में माइनर थैलेसीमिया होता है तो उनके बच्चे में मेजर थैलेसीमिया होने के चांस 50 फीसदी तक हो जाते हंै। थैलेसीमिया होने पर बच्चों को बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत होती है। नॉर्मल हीमोग्लोबिन 12 से ऊपर होना चाहिए। जिन बच्चों का हीमोग्लोबिन 5-6 होता है, उन्हें हर महीने खून चढ़ाने की जरूरत पड़ जाती है।
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शादी के बाद जरूर कराना चाहिए थैलेसीमिया का टेस्ट
थैलेसीमिया का पता लगाने के लिए खून के हीमोग्लोबिन का टेस्ट किया जाता है। शादी के बाद पति और पत्नी को थैलेसीमिया का टेस्ट जरूर कराना चाहिए, ताकि होने वाले बच्चे को इस बीमारी से बचाया जा सके। थैलेसीमिया से पीडि़त बच्चे को बहुत कमजोरी होती है। उसकी सांसें फूलने लगती हैं, तिल्ली बढऩे लगती है और चेहरे पर बदलाव होने लगता है। इन सभी लक्षणों से बीमारी की पहचान की जा सकती है। थैलेसीमिया एनीमिया का ही एक प्रकार है।
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