रीवा। काल भैरव जयंती आज बुधवार को मनायी जायेगी। काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति को डर से मुक्ति मिलती है। ऐसी मान्यता है कि काल भैरव की पूजा करने से ग्रह बाधा और शत्रु बाधा दोनों दूर होते हैं। धार्मिक मान्यता है कि शनि और राहु के कष्टों से मुक्ति के लिए भैरव की पूजा एवं व्रत अचूक उपाय हैं। इसी दिन भगवान शिव ने काल भैरव का अवतार लिया था। इसलिए इस पर्व को काल भैरव जयंती के रूप में मनाया जाता है। काल भैरव भगवान शिव के रौद्र रूप हैं। इस दिन भगवान भैरव की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन सुबह व्रत का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद रात के समय काल भैरव की पूजा पूरे विधि विधान से की जाती है। आपको बता दें कि रीवा के गुढ़ में भैरवनाथ मंदिर अपने आप में विश्व भर में एक अलग पहचान बनाए हुए हैं, इसे देखने भारत ही नहीं बल्कि विदेशो से पर्यटक पहुंचते हैं। इसकी बड़ी वजह इस मंदिर में काल भैरव की विशालकाय प्रतिमा है। इतिहास के अनुसार इसका निर्माण 10वीं 11वीं शताब्दी के मध्य का माना जाता है। प्रतिमाकी लंबाई 8.50 मीटर तथा चैड़ाई 3.70 मीटर है। इस प्रतिमा के दाई ओर हाथ में रुद्राक्ष की माला हैए दाईं ओर के ऊपरी हाथ में सर्प और नीचे के हाथ में कलश स्थापित हैए गले में रुद्राक्ष की माला और सर्प लिपटे हुए हैं। कमर में सिंहमुख अंकन का आकर्षण है। इस मूर्ति के दोनों ओर एक खड़े हुए एक बैठे हुए पूजन करते हुए व्यक्ति का अंकन है। इस तरह की विशालकाय और कलाकृतियों से सजी देश की अद्भुत प्रतिमाओं में से यह एक है। लोग प्रतिमा को छू नहीं सकते, केवल उसे देख सकते हैं। आपको बता दें कि इस प्रतिमा को उठाने का प्रयास किया गया लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
ऐसे करें पूजन
काल भैरव का पूजन करने वाले लोगों को इस दिन जल्दी उठना चाहिए और स्नान कर साफ वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद भगवान भैरव की प्रतिमा के आगे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। काल भैरव को काले तिल, उड़द अर्पित करने चाहिए। मंत्रों का जाप करते हुए विधिवत पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा बिल्वपत्रों पर सफेद या लाल चंदन से ‘नम: शिवायÓ लिखकर शिव लिंग पर चढ़ाना चाहिए।
पूजन का समय
बुधवार, अष्टमी तिथि शुरू होने पर सुबह 05:49 बजे से गुरुवार 17 अगस्त को सुबह 07:57 बजे अष्टमी तिथि समाप्त होने तक।
काल भैरव व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भैरव को शिवजी का गण माना गया है, जिनका वाहन कुत्ता है। काल भैरव का व्रत रखने से सभी इच्छाएं और मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। भैरव की उपासना बटुक भैरव और काल भैरव के रूप में बेहद प्रचलित है। तंत्र साधना की बात करें तो इसमें भैरव के 8 स्वरूप की उपासना की बात बताई गई है। असितांग भैरव, रुद्र भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत्त भैरव, कपाली भैरव, भीषण भैरव संहार भैरव इसके रूप हैं। व्रत रखने वाले भक्त को पूरे दिन ‘ओम काल भैरवाय नम:Ó का जाप करना चाहिए।
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गुस्से में काट दिया था ब्रह्मा का सिर, प्रायश्चित के लिए धरती पर आकर की थी तपस्या
हर साल मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जी की जयंती होती है। इस दिन इनकी विशेष पूजा की जाती है। इनकी पूजा करने से बुरी शक्तियों से रक्षा होती है। काल भैरव से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार काल भैरव ने ब्रह्मा जी का सिर काट दिया था, जिसके चलते इन पर श्राप चढ़ गया था।
शिवपुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच श्रेष्ठ पद को लेकर विवाद हो गया। इस विवाद के दौरान ही ब्रह्मा जी ने भगवान शिव की निंदा कर दी, जिससे शिव जी बहुत क्रोधित हुए। इस क्रोध से ही भगवान शिव ने अपने रौद्र रूप से काल भैरव को जन्म दिया। जिसके बाद काल भैरव ने भगवान शिव के अपमान का बदला लेने के लिए अपने नाखून से ब्रह्मजी के उस सिर को काट दिया जिस सिर से उन्होंने शिव जी की निंदा की थी। इस कारण काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया। इससे मुक्ति पाने के लिए काल भैरव से भगवान शिव ने कहा कि वो धरती पर जाएं और प्रायश्चित करें। भगवान शिव ने काल भैरव से कहा कि जब ब्रह्मा जी का कटा हुआ सिर हाथ से गिर जाएगा तभी इस पाप से तुम्हें मुक्ति मिलेगी।
कहे जाते हैं काशी के कोतवाल
काल भैरव ने प्रायश्चित किया और उनका ये प्रायश्चित काशी में जाकर खत्म हुआ। जिसके बाद काल भैरव काशी में स्थापित हो गए और तभी से इस शहर के कोतवाल कहे जाने लगे। काशी में जो भी लोग रहने के लिए जाते हैं, वो सबसे पहले भैरव के मंदिर जाते हैं और उनकी पूजा जरूर करते हैं। हर साल काल भैरव जयंती पर इनके मंदिर में विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। यहां लोग इन्हें तेल अर्पित करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इनकी पूजा करने से भय और बुरी शक्तियों से रक्षा होती है।
अंग्रेज अफसर ने खुदवा दिया था काल भैरव मंदिर, बाद में बन गया भक्त
महाकाल की नगरी उज्जैन का काल भैरव मंदिर अपने आप में अनूठा और चमत्कारी है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां पर भगवान काल भैरव साक्षात रूप में मदिरा पान करते हुए नजर आते हैं। शराब से भरे प्याले मूर्ति के मुंह से लगाते ही देखते ही देखते खाली हो जाते हैं। शराब कहां जाती है, यह जानने के लिए एक अंग्रेज अफसर ने गहन तहकीकात करवाई। उसने प्रतिमा के आसपास काफी गहराई तक खुदाई करवाई, लेकिन जब नतीजा कुछ नहीं निकला। इसके बाद वह अंग्रेज अफसर भी बाबा काल भैरव का भक्त बन गया।
उज्जैन में भगवान महाकाल को प्रतिदिन 5 किलो भांग से शृंगारित किया जाता है, वहीं उनके सेनापति बाबा काल भैरव दिनभर में क्विंटलों शराब पी जाते हैं। सुनकर अजीब लगता है, लेकिन ये सच है। उज्जैन में स्थित काल भैरव मंदिर में प्रसाद के रूप में शराब चढ़ाई जाती है। इस मंदिर के अलावा भारत में अनेक ऐसे मंदिर हैं, जिनके रहस्य आज तक अनसुलझे हैं।
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