सतना. गणेशोत्सव को लेकर मूर्तिकारों ने तैयारी शुरू कर दी है। मूर्तिकार मिट्टी से भगवान गणेश को भव्य स्वरूप देने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहे हैं। स्थानीय मिट्टी के अलावा मूर्तियों में कोलकाता की मिट्टी का उपयोग भी किया जा रहा है।
कारीगर बताते हैं कि इस काम में उनके परिवार की महिलाएं भी साथ देती हैं। मूर्तियों को रंगों से सजाना, उन्हें पगड़ी पहनाना जैसे कार्य में महिलाएं सहयोग करती हैं। गणेश चतुर्थी को लेकर इस बार सतना में मूर्ति बनाने वाले कारीगरों में गजब का उत्साह दिख रहा है।
वहीं मूर्तिकारों के पास शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के लोग ऑर्डर देने भी पहुंच रहे हैं। मूर्तिकार 25 अगस्त तक मूर्तियों को अंतिम रूप देने का प्रयास कर रहे हैं। शहर के सतना-रीवा रोड, खेरमाई रोड व अन्य स्थानों पर दूसरे शहरों के मूर्तिकार भगवान गणेश को गढ़ने का काम बीते जून-जुलाई से कर रहे हैं।
मूर्तिकारों के पंडालों में साढ़े 6 फीट और 7 फीट अधिकतम ऊंचाई वाली प्रतिमा बन रही है। हालांकि मूर्तियों की कीमत भी 500 से लेकर 20 हजार रुपए तक बताई जा रही है।
मूर्तिकार पप्पू रैकवार बताते हैं कि वो 40 साल से सतना शहर में मूर्ति बना रहे हैं। हमेशा से मिट्टी के भगवान ही गढ़े हैं। मिट्टी की मूर्ति पानी के अंदर 15 से 30 दिनों के अंदर घुल जाती है।
साथ ही इसके अंदर लगाई गई घास और लकड़ी भी पानी के अंदर खत्म हो जाती है। प्रदूषण भी नहीं फैलता है। जब नदी तालाब में पानी का स्तर कम होता है तो पीओपी की मूर्ति बिना घुले यथास्थिति में लोगों को दिखती रहती है।