रीवा। चैत्र मास की नवरात्रि शनिवार से प्रारम्भ हो रही है। कोरोनाकाल के चलते पिछले दो साल से देवी मंदिरों में अधिकाधिक श्रद्धालुओं का पहुंचना वर्जित रहा, मगर इस बार कोरोना संक्रमण नियंत्रण में है। जिसके चलते चैत्र नवरात्रि का उत्साह जिलेभर में देखने को मिलेगा। जिले के मुख्य अष्टभुजी देवी, रानीतालाब मंदिर, जालपा देवी मंदिर सहित अन्य देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी। इस लिहाज से आवश्यक सफाई व सुरक्षा व्यवस्था की मांग जिला प्रशासन से की गई है। बताते हैं कि सामान्य तौर पर मां दुर्गा का वाहन सिंह माना गया है, लेकिन नवरात्रि में दिवसवार माता रानी का वाहन निर्धारित किया गया है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि का प्रवेश शनिवार के दिन हो रहा है। अत: देवी पुराण की मान्यताओं के अनुसार मां भगवती अश्व पर बैठकर आयेंगी तथा नवरात्रि का समापन रविवार के दिन होने से मां भगवती का प्रस्थान महिष या भेंसे की सवारी पर होगा। शास्त्रों में घोड़े पर सवार होकर मां भगवती का आगमन शुभ नहीं माना गया है, यह तीव्र घटनाओं के संकेत कहे गए हैं। जैसे प्राकृतिक आपदाएं, सत्ता पक्ष को कष्ट, ब्राह्मण वर्ग का विरोध तथा उपद्रव। इसी प्रकार से इस वर्ष मां दुर्गा का प्रस्थान महिष पर होने से शुभ नहीं माना गया है। बता दें कि चैत्र नवरात्रि को लेके ज्योंतिर्विद राजेश साहनी से बात की गई तो उन्होंने पूजा के विधि विधान सहित मूहूर्त की विस्तृत जानकारी दी।
चैत्र नवरात्रि के नौ दिन
– 2 अप्रैल, दिन- शनिवार, इस दिन नवरात्रि का पहला दिन होगा। इस दिन व्रत रखने वाले लोग शुभ मुहूर्त में घट स्थापना करेंगे और मां शैलपुत्री की पूजा विधि विधान से करेंगे।
–3 अप्रैल, दिन- रविवार, नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा होगी।
– 4 अप्रैल, दिन- सोमवार, चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के चन्द्रघण्टा स्वरूप की पूजा की जाएगी।
– 5 अप्रैल, दिन- मंगलवार, नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप को पूजा जाता है।
– 6 अप्रैल, दिन- बुधवार, नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा विधि विधान से होती है।
– 7 अप्रैल, दिन- गुरूवार, इस दिन नवरात्रि का छठवें दिन कात्यायनी माता की पूजा-अर्चना होती है।
– 8 अप्रैल, दिन- शुक्रवार, नवरात्रि के सातवें दिन को महा सप्तमी भी कहा जाता है। इस दिन माता कालरात्रि की पूजा की जाएगी।
– 9 अप्रैल, दिन- शनिवार, इस दिन दुर्गा अष्टमी होगी। आज के दिन महागौरी की विधि विधान से पूजा सम्पन्न होगी।
– 10 अप्रैल, दिन- रविवार, नवरात्रि के नौवें दिन को मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। चूंकि चैत्र शुक्ल नवमीं के दिन भगवान राम का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि को राम नवमीं के रूप में भी मनाया जाता है। आज ही के दिन सायंकाल कन्या भोजन तथा हवन के पश्चात नवरात्रि व्रत का पारण किया जाएगा।
कलश स्थापना मुहूर्त
– 2 अप्रैल को प्रात: 5.55 बजे से प्रात: 8.31 बजे तक- अति आवश्यकता में।
– प्रात: 11.41 से दोपहर 12.32 बजे तक- अभिजीत मुहूर्त, द्विस्वभाव लग्न मिथुन एवं अश्वनी नक्षत्र में। इस अवधि में घट स्थापना किया जाना शास्त्र सम्मत होगा। सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त।
– शास्त्रों में अपरान्ह काल के पश्चात घट स्थापना का निषेध बताया गया है। शास्त्र सम्मत मुहूर्त में की गई घटस्थापना से व्रत उपवास साधना उपासना आदि के पूर्ण फलों की प्राप्ति होती है लेकिन अशुभ मुहूर्त में की गई घटस्थापना विपरीत फलों की प्राप्ति देती है।
देवी उपासना में लें संकल्प
शास्त्र सहमति है कि स्नान, दान, व्रत और अनुष्ठान में संकल्प अनिवार्य रूप से लिया जाना चाहिए। सर्वप्रथम हाथ में जल लेकर अनुष्ठान करने के स्थान, माह, पक्ष, तिथि, वार आदि का विवरण देते हुए व्रत एवं नवरात्रि के अनुष्ठान का संकल्प लेना चाहिए। ध्यान रखें की प्रथम दिन जो संकल्प लिया जाए उसी के अनुसार पूरे 9 दिनों तक देवी पूजन का क्रम एवं स्वयं के फलाहार आदि कृत्यों का पालन करना चाहिए।
ऐसे करें घट स्थापना
घट स्थापना करने के लिए सर्वप्रथम खेत की मिट्टी की दो उंगल चौड़ी सतह बनाकर उसमें सप्तधान्य या जौ बो दें। कलश के उदर में गंगाजल, फूल, गंध, सुपारी, अक्षत, पंचरत्न एवं सिक्के डाले। कलश मुख में आम के पांच पल्लव लगाने के साथ चुनरि या लाल वस्त्र में बांधकर नारियल को स्थापित करें। कलश स्थापना में समस्त पवित्र नदियों, तीर्थों, समुद्रों, नवग्रहों, दिशाओं, नगर, ग्राम एवं कुल देवताओं के साथ समस्त योगिनियों को पूजा में आमंत्रित किया जाता है। कलश पर मंगलकारी चिन्ह स्वास्तिक अंकित करना चाहिए। तत्पश्चात देवी का आह्वान करते हुए उनका षोडशोपचार पूजन किया जाना चाहिए। धूप, दीप, नैवेद्य वस्त्र, अलंकार, आभूषण, श्रृंगार समर्पित करते हुए देवी को अपनी शक्तियों सहित पधारने का निमंत्रण देना चाहिए। शारदीय नवरात्रि कुलधर्म, कुलाचार एवं धर्म आचरण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माने गए हैं। इनमें देवी घटस्थापना, अखंड दीप प्रज्वलन, हवन, सरस्वती पूजन तथा दशमी तिथि को विसर्जन का विशेष महत्व है।
देवी पूजन में अखण्ड दीप आवश्यक
मान्यता है कि दीपक की उत्पत्ति सूर्य के अंश से हुई है। दीपक के प्रकाश को इतना पवित्र माना गया है कि मांगलिक कार्यों से लेकर आरती तक में इसका प्रयोग अनिवार्य है। अंधकार से प्रकाश की ओर दीपक की यात्रा है, जिस कारण से देवी पूजन में अखंड दीप अनिवार्य कहा गया है। नवरात्रि में गाय के घी का अखंड दीपक सर्वाधिक शुभ माना गया है। इसके पश्चात तिल के तेल का दीपक सौभाग्यदायी होता है। सरसों के तेल का प्रयोग अखंड दीपक में नहीं करना चाहिए। अखंड दीपक देवी प्रतिमा के बाएं और रखा जाना चाहिए। ध्यान रहे दीपक की बत्ती इस तरह की हो कि संपूर्ण 9 दिन बिना किसी व्यवधान के जल सके। यदि अखंड दीपक जलाने लायक परिस्थितियां ना हो तो साधना काल में दीपक प्रज्वलित करते हुए भी लाभ लिया जा सकता है।
नवरात्रि के व्रत
सामान्यत: नवरात्र के नौ दिनों में फलाहार से युक्त व्रत का पालन करते हुए देवी साधना किए जाने का विधान है। महत्वपूर्ण यह है की देवी भक्त 9 दिन अपनी सामथ्र्य के अनुसार व्रत आदि नियमों का पालन करते हुए देवी साधना करते हैं। यदि 9 दिनों तक व्रत रखने की सामथ्र्य ना हो तो ऐसी स्थिति में प्रतिपदा अर्थात बैठकी से लेकर सप्तमी पर्यंत सप्तरात्रि व्रत, नवरात्र की पंचमी तिथि को एक भुक्त व्रत, नवरात्रि की षष्ठी को नक्त व्रत, सप्तमी तिथि को अयाचित व्रत, अष्टमी तिथि को उपवास एवं नवमीं को पंचरात्रि नामक व्रत रखकर नवरात्रि व्रतों का लाभ लिया जा सकता है।
००००००००००००