रीवा। नगर निगम प्रशासन द्वारा शहर के सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति जानने के लिए लाखों रुपए खर्च कर फीडबैक मशीने लगवाई गई थी, इन मशीनों से दिल्ली स्तर पर शहर के सार्वजनिक शौचालयों की मानिटरिंग की जाती थी। दो वर्ष पूर्व स्वच्छता सर्वेक्षण 2019 में इन मशीनों को निगम ने सार्वजनिक शौचालयों में स्थापित कराया था लेकिन अब यह फीडबैक मशीनें बंद पड़ी है। इससे किसी प्रकार की कोई मानिटरिंग निगम नहीं करा रहा है। हैरानी की बात तो यह है कि अधिकारी इस मशीन का मेंटीनेंस और इससे मानिटरिंग कराने की जगह रजिस्टर पर जनता की राय ले रहे है। यह भी जनता दे रही है या फिर शौचालय संचालक द्वारा मनमानी कागजी फीडबैक तैयार किया जा रहा है इस बात को भी गलत नहीं ठहराया जा सकता है। स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 के समय इन मशीनों से लगातार मानिटरिंग कम्प्यूटर के माध्यम से की जाती थी, किसी एरिया का कौन सा शौचालय कितना स्वच्छ है इस बात की जानकारी निगम को आसानी से मिल रही थी और जहां गंदगी होती थी अधिकारी सुधार के लिए आदेशित करते रहते थे लेकिन अब यह व्यवस्था पूरी तरह से बंद है। बताया जाता है कि इसके लिए बीएसएनएल के साथ निगम ने अनुबंध किया था जिसके द्वारा एक आईडी पासवर्ड निगम को दिया गया था इसी से मानिटरिंग भी होती थी लेकिन अब अधिकारियों को आईडी पासवर्ड की जानकारी ही नहीं है।
लगभग 12 लाख रुपए किए गए थे खर्च
बता दे कि जिस समय निगम प्रशासन द्वारा इन मशीनों को लगवाया गया था, उस समय ही अधिकारियों ने इनकी कीमत को लेकर जानकारी नहीं दी थी। अनुमानित रेट एक मशीन का 25 से 30 हजार रुपए बताया गया था, इस हिसाब से निगम ने इन 46 शौचालयों में मशीन लगवाने के लिए करीब 12 लाख रुपए खर्च किया था। इसी प्रकार बीएसएनएल कंपनी के माध्यम से इसका संचालन करने के लिए भी लाखों रुपए का खर्च किया गया था लेकिन सर्वेक्षण के बाद इन मशीनों को निगम भूल ही गया। अब आलम यह है कि यह मशीने सार्वजनिक शौचालयों में केवल शोपीस बनकर रह गई है। ओडीएफ प्लसप्लज सर्टिफिकेट सहित सर्वेक्षण के लिए की जा रही एमआईएस फीडिंग में निगम को नियमत: इन मशीनों की फीडबैक रिपोर्ट दी जानी चाहिए लेकिन निगम द्वारा रजिस्टर में जनता द्वारा दिया जा रहा फीडबैक रिपोर्ट भरी जाती है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि मशीनों के माध्यम से मिल रहे फीडबैक में जनता सार्वजनिक शौचालयों के हकीकत की पोल खोल रही थी जिससे निगम के अंक कट रहे थे लेकिन रजिस्टर के फीडबैक में निगम मनमानी रिपोर्ट तैयार कर लेता है।
56 हजार आया था बिल–
आधिकारिक सूत्रों की माने तो जब निगम ने यह मशीने लगवाई तो इसके संचालन का काम बीएसएनएल को दिया गया था। काम के बाद करीब 56 हजार का बिल भुगतान होना था, लेकिन निगम ने नही किया। कुछ दिन तक मशीनों में बीएसएनएल की चिप लगी रही लेकिन बाद में उन्हें निकाल लिया गया। जिसके बाद से यह मशीने सिर्फ डिब्बा बनकर रह गई है।, गूगल मैप में भी शौचालय की जानकारी ठीक से नहीं मिल रही है जबकि गूगल लोकेशन की जानकारी भी निगम को सार्वजनिक शौचालयों के आस-पास संकेतक में प्रदर्शित करनी है।
करीब 12 लाख खर्च कर यह फीडबैक मशीने सार्वजनिक शौचालय में लगाई गई थी, ताकि जनता की राय से पता चल सके कि सुलभ शौचालय में सेवाएं कैसी मिल रही है लेकिन अब यह खराब पड़ी है। इसमें सुधार इसलिए नही कराया जाता क्योंकि निगम की हकीकत सामने आ जयेगी। जब इन्हें डब्बा ही बनाना था तो लाखों रुपये खर्च क्यों किये गए। इनमे सुधार कर मॉनिटरिंग शुरू होनी चाहिए।
अजय मिश्रा बाबा, पूर्व नेता प्रतिपक्ष ननि।