रीवा। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि गुरु पूर्णिमा के रूप में 13 जुलाई बुधवार को मनाई जाएगी। पूर्णिमा तिथि 13 तारीख को प्रात:काल 4 बजे से संचरण करेगी जो रात्रि 12 बजे तक व्याप्त रहेगी। रात्रि 11.18 बजे तक व्याप्त पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में गुरु पूर्णिमा का पर्व संपन्न होगा। इस वर्ष गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का संचरण शनि की राशि मकर में होने से गुरुपर्व विशिष्ट हो गया है। इस दिन के विशेष पूजन मुहूर्त में अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11.45 से लेकर 12.37 बजे तक रहेगा। इसके पश्चात गोधूलि बेला में अन्य शुभ मुहूर्त शाम 5.50 बजे से लेकर 7.30 बजे तक गुरु पूजन हेतु विशिष्ट है। इस वर्ष की गुरु पूर्णिमा बुधवार के दिन होने से भगवान वेदव्यास के अलावा देवगुरु बृहस्पति, भगवान विष्णु एवं शिवजी सहित अपने गुरु की पूजा अर्चना करते हुए श्रद्धा भाव से वस्त्र, अनाज, फूल एवं दक्षिण आदि देकर गुरु का सम्मान करना चाहिए।
ऐसे मनाएं गुरु पूर्णिमा
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋ तु के आरम्भ सूर्य के कर्क राशि में संचरण की अवधि में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर जप, तप, साधना एवं अनुष्ठान संपन्न करते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी अनुकूल एवं समशीतोष्ण होते हंै। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति गुरु पर्व पर मिलती है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरु को सम्मानित करने का होता है। पवित्र नदियों में स्नान के उपरांत मंदिरों में अभिषेक, पूजन तथा प्रसाद अर्पित करते हुए गुरुपूर्णिमा मनाए जाने की परंपरा है। हनुमान चालीसा में उल्लेख है कि- कृपा करहु गुरुदेव की नाई, अत: इस पर्व पर श्री हनुमान जी का भी गुरु रूप में पूजन का विधान है।
सूर्यदेव या भगवान शिव का भी करें पूजन
शास्त्रों में गुरु का स्मरण ईश्वर से पूर्ण करने का निर्देश मिलता है। गुरु पूर्णिमा के दिन सभी शिष्यों एवं भक्तों को चाहिए कि वह अपने गुरु का श्रद्धा पूर्वक पूजन करें, और उन्हें व्यास जी का अंश मानते हुए उनका यथासंभव धूप, दीप ,नैवेद्य आदि से चरण पूजन करते हुए यथाशक्ति दक्षिणा भेंट करें। गुरु के अभाव में सूर्य या शिव को गुरु मानकर गुरु पूर्णिमा के दिन उनका पूजन किया जा सकता है, ऐसा शास्त्रीय मत है। अथवा अपने इष्ट देव को भी गुरु रुप में स्थापित कर उनका विधिवत पूजन करना भी शास्त्र सम्मत है।
०००००००००००