रीवा। अवधेश प्रताप ङ्क्षसह विश्वविद्यालय में बिना तकनीकी स्वीकृति के होने वाले निर्माण कार्य फिर सुर्खियों में हैं। मामले को लेकर कुलपति से गम्भीर शिकायत की गई है। शिकायत में सामाजिक कार्यकर्ता बीके माला ने मप्र शासन ने 3 जून 2012 को समस्त निर्माण कार्य ई-टेण्डर से कराने के आदेश दे रखे हैं। इस आदेश का निरंतर विश्वविद्यालय द्वारा उल्लंघन कर ऑफलाइन टेंडर किए जा रहे हैं। शिकायत में आरोप है कि अपने चहेतों को लाभ देने के लिए विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अधिकारी ये सारे टेंडर गुपचुप तरीके से करते हैं। उक्त निविदा की सूचना न तो विश्वविद्यालय की वेबसाइट अपलोड की जाती और न ही सूचना पटल पर चस्पा होती है। इतना ही नहीं, शासन के उक्त आदेश के तहत टेंडर फार्म की ऑनलाइन राशि 1 हजार रुपये निर्धारित की गई है। इसके उलट विश्वविद्यालय प्रशासन मात्र 300 रुपये में ऑफलाइन टेंडर फार्म देकर विश्वविद्यालय कोष को क्षति पहुंचा रहा है। शिकायत में कहा गया कि विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा शातिराना अंदाज में करोड़ों के कार्य को संक्षिप्त निविदा के तहत दो लाख, पांच लाख रुपये में विभाजित कर अपने चहेतों ठेेकेदारों को दे दिया जाता है, जिसका कमीशन नियमित कुछ विशेष अधिकारियों तक पहुंचता हैं। बहरहाल, शिकायत को प्राप्त कर उसमें कुलपति ने नियमानुसार कार्यवाही करने का उल्लेख किया है, जिसका पालन करने से जिम्मेदार अधिकारी गुरेज कर रहे हैं।
शिकायत में आरोप लगाते हुए कहा गया कि कोई भी निर्माण या मरम्मत कार्य भवन निर्माण समिति की तकनीकी स्वीकृति के उपरांत प्रशासकीय स्वीकृति होने पर किया जाना चाहिए। इस आदेश को विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद ने भी अंगीकृत किया है। इसके बावजूद विश्वविद्यालय के ऐसे समस्त निर्माण या मरम्मत कार्य बिना तकनीकी स्वीकृति के हो रहे हैं। केवल प्रशासकीय स्वीकृति के आधार पर इन कार्यों का भुगतान किया जा रहा है।
पुताई का 10 गुना अधिक दर पर भुगतान का आरोप
शिकायत में आरोपित किया गया कि विश्वविद्यालय टी-गार्ड की पुताई एवं पेंटिंग कार्य तथा स्लोगन स्टैण्ड बेस की टैरा कोटा से पुताई का कार्य बिना नाप नग के हिसाब से किया गया, जिसका भुगतान लोक निर्माण विभाग की प्रचलित दर से लगभग 10 गुना अधिक दर से भुगतान किया गया है, जो घोर भ्रष्टाचार का सूचक है। इस मामले की अनिवार्यत: जांच की मांग शिकायतकर्ता ने उठाई है।
वर्जन
ऐसा भुगतान मेरे से पहले का होगा। मैं अभी एक महीने पहले ही आया हूँ। मैंने ऐसा भुगतान नहीं किया है।
आरके प्रजापति, वित्त नियंत्रक
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